हरिद्वार। कोविड—19 अगर किसी के लिए वरदान साबित हुआ है तो वो है प्रकृति। 21 दिन का यह लॉक—डाउन मॉं गंगा के लिए एक नया जीवन लेकर आया है आजादी के बाद से ही गंगा को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने को देश में कई सरकारों ने लाखों करोड़ों रूपये के बजट बनाए लेकिन जो असर इस 21 दिन के लॉक डॉउन का दिखायी दिया वह अभी तक मॉं गंगा के लिए करोड़ों रूपये खर्च होने के बाद भी नहीं दिखायी दिया। हरिद्वार में मॉं गंगा का बह रहा पानी कांच के समान साफ दिखायी दे रहा है।
मां गंगा, सृष्टि के प्रारम्भ के किसी काल खण्ड से गौमुख से निकलकर गंगा सागर तक बहकर लगातार मानव जाति को अपना आशीर्वाद देती चली आ रही है। आज लॉक डॉउन के समय गंगा फिर से अपने उसी चमत्कारिक औषधिय रूप में बहती नजर आ रही है। अगर बात स्थानिय निवासियों की करें तो यहां हरिद्वार के हरकी पैड़ी पर कुछ दशक पूर्व जब वे अपने परिवार के साथ घूमने आते तो यही भोजन कर इसी गंगा का पानी पीया करते रहें है वहीं पर्यावरण प्रेमी डॉ शिवा अग्रवाल के अनुसार समय के साथ साथ मां गंगा का पानी दूषित होता चला गया और यह आचमन योग्य भी ना रहा। परन्तु कोविड—19 के कारण पूरे देश में लागू हुए लॉक डॉउन के कारण मां गंगा एक बार फिर उसी स्वच्छ रूप में दिखायी दे रही है और मन गंगा के पानी को पीने के लिए लालायीत हो रहा है।
बात अगर विषेशज्ञों की करें तो उनका मानना है कि लॉक डॉउन में मानवीय गतिविधियां कम होने के कारण ही मुख्य रूप से गंगा साफ हुई है। गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रो. बी.डी जोशी के अनुसार लॉक डॉउन होने कारण हरिद्वार एवम् उत्तराखण्ड के अन्य स्थानों पर यात्री नहीं पहुंच पा रहें है जिस कारण ना तो वे गंगा में नहा कर गंगा को मैला कर रहें है ना ही होटलों में रूक पा रहें है जिस कारण वहां से निकलने वाला सॉलिड वेस्ट भी आज ना के बराबर ही है। इसी के साथ हरिद्वार में विभिन्न जगहों से आकर अस्थी विसर्जन करने वाले भी नहीं आ पा रहें है जिस कारण भी गंगा प्रदूषण से बची हुई है। मानव और प्रकृति का हमेशा से ही संघर्ष रहा है। खुद की विनाशलीला लिखते मानव को प्रकृति संकेत देती है परंतु मानव नही समझता तब इस तरह की महामारी कहीं प्रकृति के क्रोध का परिणाम तो नही।