भल्ला कॉलेज में आती बस को आस भरी नजरो से निहारते लोग
लॉक डाउन में काम छूटा भूखे मर रहे, मकान मालिक मांग रहा किराया
हरिद्वार | कहते है की किसी भी देश के विकास की रीढ़ उसके कामगार होते है, मगर जब यही हाड़तोड़ मेहनत करने वाले कामगार सड़क पर आ जाए , तो हालत बुरे हो जाते है! कोरोना के इस दौर में ये आम नजारा है , और हरिद्वार की बात करे तो कई मजदूर ऐसे है जो आज भी मीलो चल अपने घर पंहुचने की जुगत में लगे , अपने घर पंहुचने का दर्द उनकी आँखों में साफ़ झलकता है , मगर व्यवस्था चलाने वाले सिस्टम को इसकी परवाह कहा !
कोरोना संकट के इस दौर में हर कोई अपने घर लौटना चाहता है हर कोई इस जुगत में है की वो किसी तरह अपने घर लौट सके ! मगर इन सब के बीच कई ऐसे भी है जो दो वक्त की रोटी की तलाश में आये थे दूसरे नगर मगर आज उनको पूछने वाला कोई भी नहीं !अब हरिद्वार के भल्ला स्टेडियम में बने बस स्टैंड में बैठे इन मजदूरो को ही देख ले ! ये व्ही लोग है जो कभी दुसरो के आशियाने बनाते थे , मगर आज बदले हुए वक्त में ये अपने घर पंहुचने की राह तक रहे है ! देहरादून से मीलो का पैदल सफर तय कर ये इस उम्मीद में हरिद्वार पंहुचे है , की कोई तो इन्हे इनके घर की चौखट तक पंहुचायेगा ! उत्तरप्रदेश से आ रही बसों को देखते ही इनकी नजरे चौकना हो जाती है ,की शायद अब इनमे इनके जिले की बस भी हो
भल्ला स्टेडियम के बाहर बैठे लोगो पे जब नजर जाती है तो मन तीस मारने लगता है। माँ के सीने से चिपटे नन्हे बच्चे सिस्टम की नाकामी को दर्शाते है भूख प्यास और घर लौटने की चिंता इन माँओ के चेहरे पे साफ़ झलकती है। बात करने पे पता चला की जाना तो लखीमपुर है , मगर कब तक ये पता नहीं
ये हाल महज हरिद्वार का ही नहीं है देश के हर जिले में कमोबेश यही हालत है तमाम प्रयासों के बाद भी हालत विकट होते जा रहे है ! सुदूर विदेशो से लौटने वालो के हालातो व् सिस्टम द्वारा किये गए प्रयासों की तुलना इन मजदूरो से करे तो इन पर दया आती है